*जबलपुर की गलियों से एमपीएल के स्टेडियम तक, प्रथम और सफ़िन के संघर्ष की कहानी*
*मध्य प्रदेश, जून 2025:* *मध्यप्रदेश के दिल जबलपुर* , के विपरीत परिस्थितियों के दो युवाओं ने जुनून और मेहनत से अपनी तकदीर लिख दी है। सफ़िन अली और प्रथम उइके, दो जोशीले और तेज़ तर्रार गेंदबाज़, जबलपुर रॉयल लायंस की टैलेंट हंट प्रतियोगिता में जीत हासिल कर टीम का हिस्सा बन गए हैं। अब ये दोनों खिलाड़ी मध्यप्रदेश लीग *टी20 सिंधिया कप 2025 में जलवा बिखेरेंगे, जिसकी शुरुआत 12 जून से हो रही है* । *जबलपुर टीम 13 जून* को अपना पहला मैच खेलेगी, और उसी के साथ ये दो युवा खिलाड़ी उन सैकड़ों अनदेखे और अनसुने सपनों की उम्मीदें लेकर मैदान में उतरेंगे, जिनका जज़्बा भले ही कभी देखा न गया हो, पर वो कभी कमज़ोर नहीं था।
*सराफा,* अलीगंज की तंग गलियों से निकलकर 20 वर्षीय सफ़िन अली ने सिर्फ बल्लेबाज़ों से नहीं, ज़िंदगी की हर मुश्किल से मुकाबला किया। छोटा सा गैराज चलाने वाले अश्फाक अली के बेटे सफ़िन का बचपन 12 लोगों के संयुक्त परिवार में बीता, जहाँ पैसों की तंगी थी लेकिन सपनों की कोई कमी नहीं थी। 12वीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी, और क्रिकेट ही उनका एकमात्र सहारा बन गया।ना सही जूते थे, ना कोई कोचिंग, फिर भी सफ़िन अली हर दिन 3 किलोमीटर साइकिल चलाकर मैदान पहुंचते, उधार की गेंदों और सिले हुए पुराने जूतों के साथ अभ्यास करते थे। *सफ़िन कहते हैं, “इतनी मेहनत के बाद ये बहुत बड़ा पल है कि मैं जबलपुर टीम का हिस्सा बन रहा हूं।”* मोहम्मद सिराज की जिद और विराट कोहली की आक्रामकता से प्रेरित होकर उन्होंने अपनी रफ्तार को अपना सबसे बड़ा हथियार बना लिया।
*जब सफ़िन का नाम जबलपुर रॉयल लायंस की फाइनल टीम में आया, तो उसकी आंखें भर आईं।* *उसने धीरे से अपने पिता से कहा,* “स्पाइक्स नहीं थे, लेकिन सपने थे। इस टीम ने मुझे खुद को साबित करने का मौका दिया।” ये सुनकर उसके पिता अश्फाक अली, जिनके हाथ उस समय ग्रीस से सने थे, बिना कुछ कहे बेटे को गले लगाकर फफक पड़े। गर्व के उस पल में शब्द भी थम गए।
उनकी ही तरह, *19 वर्षीय प्रथम* उइके के भीतर भी वही जुनून था।
जबलपुर के बाहरी इलाके के एक छोटे से गांव शाहपुरा से आने वाले *प्रथम के पिता रामगोपाल* उइके एक ट्रैक्टर एजेंसी में काम करते हैं। प्रथम का क्रिकेट का सफर टेनिस बॉल क्रिकेट से शुरू हुआ था, लेकिन जल्द ही उनका हुनर जेपी एकेडमी, रानीताल के कोचों की नजर में आ गया, जो उनके गांव से लगभग 30 किलोमीटर दूर था। हर सुबह सूरज निकलने से पहले उठना, घंटों का सफर तय करना और फिर भी नेट्स में पूरी रफ्तार से गेंदबाजी करना उनकी दिनचर्या बन गई थी। *वे कहते हैं,* “वापसी का सफर पैरों से ज्यादा दिल को दर्द देता था, क्योंकि पता नहीं था कि ये सब किसी मंजिल तक पहुंचेगा भी या नहीं।” प्रथम को डेल स्टेन के तूफानी अंदाज और विराट कोहली की भूख ने प्रेरित किया। टैलेंट हंट में जब उन्होंने रनअप लिया, तो जैसे पिच पर बिजली दौड़ गई, उनकी गेंद ऑफ स्टंप उड़कर सीधा चयनकर्ताओं के दिल में जा लगी। जब उनका नाम टीम में घोषित हुआ, तो वो पल उनके पूरे परिवार के लिए सपनों के सच होने जैसा था।
*जबलपुर रॉयल लायंस के प्रतिनिधि लव मलिक ने टैलेंट हंट और जमीनी स्तर के इन खिलाड़ियों के चयन पर कहा,* “हमारा टैलेंट हंट सिर्फ क्रिकेट तक सीमित नहीं था, बल्कि यह उन युवाओं को उम्मीद, पहचान और मंच देने की पहल थी, जिनके अंदर आग तो थी, लेकिन रोशनी नहीं थी। ये लड़के न किसी बड़ी एकेडमी से आए, न इनके पास कोई टर्फ विकेट्स या ब्रांडेड गियर थे। ये ऐसे घरों से आए हैं, जहाँ हर रुपया तौलकर खर्च होता है और हर शाम अनिश्चित होती है। फिर भी, इनके पास सिर्फ एक चीज थी -विश्वास। और उसी विश्वास के सहारे इन्होंने दिल से गेंदबाजी की। आज ये लायंस की जर्सी पहनकर हमारे लिए गर्व का कारण बने हैं।”
जैसे ही जबलपुर सिंधिया कप के लिए तैयार हो रहा है, सबकी निगाहें प्रोफेशनल खिलाड़ियों पर होंगी। लेकिन सबसे जोरदार तालियां इन दो लड़कों, सफ़िन अली और प्रथम उइके के लिए गूंजेंगी, जिन्होंने सिर्फ टीम में जगह नहीं बनाई है, बल्कि पूरे शहर का दिल जीत लिया। क्योंकि क्रिकेट सिर्फ हुनर से नहीं खेला जाता, वो रूह से खेला जाता है।
